मेटावर्स में पहली बार…वास्तविक लगा आभासी संसार, दर्शकों को पसंद आई आर्ट गैलरी

सांकेतिक तस्वीर...

सांकेतिक तस्वीर…
– फोटो : Istock

ख़बर सुनें

मेटावर्स में पहली बार आभासी संसार पूरी तरह वास्तविक लग रहा था। चीजों को छूना, घूमना, बातचीत करना बेशक आभासी था, लेकिन आंखों पर चश्मे सरीखा वर्चुअल रियलिटी (वीआर) हैंडसेट लगा प्रवेश करते ही अनुभव प्रत्यक्ष मौजूदगी का मिला। एकदम वैसे, जैसे हम वास्तविक दुनिया में रहते हुए करते हैं। दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में मेटावर्स पर लगाई गई आर्ट गैलरी दर्शकों को भी पसंद आई।

दिव्यांश शर्मा और उनकी टीम ने स्टार्टअप के तहत रविवार को आभासी गैलरी लगाई। इनकी कंपनी नोएडा में है। कंपनी की सेवा पब्लिक और प्राइवेट डिवाइस पर उपलब्ध कराई जाती है। इसकी वजह इसका सस्ता होना है। डवलपर्स का कहना है कि अभी करीब डेढ़ करोड़ वीआर डिवाइस हैं। अगर कोई इन सभी डिवाइस से मेटावर्स में प्रवेश करना चाहता है तो उस पर लाखों का खर्च आता है। प्राइवेट डिवाइस पर सेवा का लाभ लेने के लिए किसी व्यक्ति को न्यूनतम 30 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से खर्च करने पड़ सकते हैं।

इस तरह तैयार हुई गैलरी
मेटावर्स में कोई भी चीज बनाने के लिए पहली उसकी फोटो ली जाती है या उसे स्कैन किया जाता है। इसके बाद उसकी विजुअल डिजाइनिंग की जाती है। कंप्यूटर और वर्चुअल रियलिटी हैंडसेट में विजुअल डिजाइन को फीड करने के बाद यह एक्सेस के लिए तैयार हो जाता है।

दो से पांच एमबीपीएस की इंटरनेट स्पीड चाहिए 
मेटावर्स के लिए कम से कम दो से पांच एमबीपीएस की इंटरनेट स्पीड की जरूरत होती है। 5जी सेवा के शुरू होने के बाद मेटावर्स की यात्रा और अधिक सुगम होगी। अभी तक नोकिया और टाटा जैसी नामी कंपनियां उनसे गैलरी तैयार करवा चुकी हैं। कई कलाकारों, आर्ट गैलरी वाले भी उनसे मेटावर्स में प्रदर्शनी लगाने के लिए इच्छुक है।

मेटावर्स के लिए कई अलग-अलग तकनीकों का समायोजन किया जाता है। ऑग्मेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी और वीडियो टूल का इस्तेमाल किया जाता है। ऑग्मेंटेड रियलिटी में किसी भी चीज को बेहतर बनाया जाता है, जिससे वह बिलकुल वास्तविक लगे।

विस्तार

मेटावर्स में पहली बार आभासी संसार पूरी तरह वास्तविक लग रहा था। चीजों को छूना, घूमना, बातचीत करना बेशक आभासी था, लेकिन आंखों पर चश्मे सरीखा वर्चुअल रियलिटी (वीआर) हैंडसेट लगा प्रवेश करते ही अनुभव प्रत्यक्ष मौजूदगी का मिला। एकदम वैसे, जैसे हम वास्तविक दुनिया में रहते हुए करते हैं। दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में मेटावर्स पर लगाई गई आर्ट गैलरी दर्शकों को भी पसंद आई।

दिव्यांश शर्मा और उनकी टीम ने स्टार्टअप के तहत रविवार को आभासी गैलरी लगाई। इनकी कंपनी नोएडा में है। कंपनी की सेवा पब्लिक और प्राइवेट डिवाइस पर उपलब्ध कराई जाती है। इसकी वजह इसका सस्ता होना है। डवलपर्स का कहना है कि अभी करीब डेढ़ करोड़ वीआर डिवाइस हैं। अगर कोई इन सभी डिवाइस से मेटावर्स में प्रवेश करना चाहता है तो उस पर लाखों का खर्च आता है। प्राइवेट डिवाइस पर सेवा का लाभ लेने के लिए किसी व्यक्ति को न्यूनतम 30 हजार रुपये प्रतिदिन के हिसाब से खर्च करने पड़ सकते हैं।

इस तरह तैयार हुई गैलरी

मेटावर्स में कोई भी चीज बनाने के लिए पहली उसकी फोटो ली जाती है या उसे स्कैन किया जाता है। इसके बाद उसकी विजुअल डिजाइनिंग की जाती है। कंप्यूटर और वर्चुअल रियलिटी हैंडसेट में विजुअल डिजाइन को फीड करने के बाद यह एक्सेस के लिए तैयार हो जाता है।

दो से पांच एमबीपीएस की इंटरनेट स्पीड चाहिए 

मेटावर्स के लिए कम से कम दो से पांच एमबीपीएस की इंटरनेट स्पीड की जरूरत होती है। 5जी सेवा के शुरू होने के बाद मेटावर्स की यात्रा और अधिक सुगम होगी। अभी तक नोकिया और टाटा जैसी नामी कंपनियां उनसे गैलरी तैयार करवा चुकी हैं। कई कलाकारों, आर्ट गैलरी वाले भी उनसे मेटावर्स में प्रदर्शनी लगाने के लिए इच्छुक है।

मेटावर्स के लिए कई अलग-अलग तकनीकों का समायोजन किया जाता है। ऑग्मेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी और वीडियो टूल का इस्तेमाल किया जाता है। ऑग्मेंटेड रियलिटी में किसी भी चीज को बेहतर बनाया जाता है, जिससे वह बिलकुल वास्तविक लगे।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *